दुनियाभर में लगातार किसी न किसी तरह की लड़ाइयाँ जारी हैं । संभव है कि इनमें कुछ समय के लिए तीव्रता भी आ जाये। यह एक तथ्य है कि सैन्य अभियानों से शांतिकाल में भी भारी मात्रा में CO2 उत्सर्जन होता है। सैन्य विनियोजन नितांत आवश्यक जलवायु संरक्षण के प्रयासों से धन लेते हैं और ऐसा लगता है कि आने वाले वर्षों तक ऐसा जारी रहेगा। प्रभावी जलवायु समाधानों के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है। दुर्भाग्य से, हम विपरीत विकास देख रहे हैं: सैन्य पुन: शस्त्रीकरण का अर्थ टकराव है, सहयोग नहीं ।
एक ओर पेरिस समझौते जैसे मसौदे हैं तो दूसरी ओर युद्ध की विभीषिका, जिससे न केवल उनमें शामिल पक्षों को बल्कि पूरी दुनिया को अलग मंजर देखने को मिल रहे हैं। एक तरफ युद्ध समाप्ति की बातें होतीं हैं, वहीँ पिछले दरवाजे से और हथियार पहुंचाए जाते हैं। इन सबके दुष्परिणामों का एक नमूना मात्र है-जलवायु परिवर्तन।