रायबरेली, 29 नवंबर। सर्दियाँ शुरू ही गयीं हैं। अब केवल सुबह-शाम वाली ठंढ नहीं रह गयी है। पूरे दिन गलन होती है। रज़ाई-कंबल निकल चुके हैं, लेकिन अभी कहीं रैन बसेरा शुरू हुआ नहीं दिखाई देता। यह अस्थाई व्यवस्था उन लोगों के लिए बनाई गई है, जिनका कोई ठिकाना नहीं है। सवाल कई हैं, मसलन क्या केवल कड़ाके की सर्दी में रैन बसेरा की जरूरत पड़ती है? शहर के हर छोर पर क्या ऐसी व्यवस्था है? क्या ऐसे लोगों को साल के बाकी महीनों सड़क किनारे ही सोना पड़ता है? क्या बस-अड्डे, रेलवे स्टेशन और जिला अस्पताल के अलावा जगह चिन्हित हैं? क्या ये जगहें कब्जा मुक्त हैं?
विकास पथ पर अग्रसर देश में कोई सड़क किनारे सोये यह ठीक नहीं है। इस पर उचित कार्यवाही की आवश्यकता है।