मेरे मित्र अनीसुर रहमान एक बांग्लादेशी-स्वीडिश कवि हैं। उनके काव्य संग्रह और लेख दुनियाभर में कई भाषाओँ में छपते आये हैं। अनीसुर से मेरी पहली मुलाक़ात नॉर्वे की राजधानी ओस्लो में 2013 की गर्मियों में हुई थी। हम दोनों नस्लवाद के विरोध में युवाओं को जागरूक करने की एक कार्यशाला के लिए मेरे एक साथी जॉन के कारण एक ही जगह ठहरे थे। बातों का जो सिलसिला तब शुरू हुआ था, वह आज भी जारी है। कभी-कभी ऐसा लगता है कि कहानियां बदलती जाती हैं, उनके पात्र एक जैसे ही रहते हैं। बांग्लादेश में पिछले कुछ महीनों में बहुत कुछ हुआ है, बहुत कुछ ऐसा जिसने इतिहास की पुनर्विवेचना को विकृत कर दिया है। बंगबंधु को भुलाने के प्रयास किये जा रहे हैं। इतिहास कई बार लिखे जा सकते हैं, पात्रों के रोल/किरदार थोड़ा-बहुत बदले जा सकते हैं, उनकी कुछ ऐसी बातों को सामने लाया जा सकता है जिनसे इतिहास में उनकी महत्ता पर कोई खास असर न पड़ता हो, लेकिन उन्हें नकारा नहीं जा सकता। इतिहास यही है।
अनीसुर में अपने देश बांग्लादेश पर बहुत कुछ लिखा है। मेरे साथ भी, और मेरे बिना भी। बंगबंधु पर उनका एक मोनोलॉग/ एक पात्रीय /एक सम्भाषणीय नाटक वापस चर्चा में है।
आज मुझे कई चेहरे याद हैं।
मुझे श्री सुहरावर्दी याद हैं।
मुझे अपने पिता याद हैं।
मुझे अपनी माँ का चेहरा याद है।
… पाकिस्तान से लंदन।
लंदन से दिल्ली।
दिल्ली से ढाका।
फिर स्वतंत्र बांग्लादेश में।
ये पंक्तियाँ बांग्लादेशी-स्वीडिश कवि अनीसुर रहमान के मोनोलॉग के अंत में कही गई हैं, जो शेख मुजीबुर रहमान की कहानी के सुखांत की तरह हैं। इस महाकाव्य एकालाप के भीतर छंद हैं जो इस साहित्यिक कृति के भीतर केंद्रीय विषयों की खोज को याद दिलाते हैं। इन विषयों में स्मृति, कल्पना और वास्तविकता, वर्तमान का सार और एक अंतर्राष्ट्रीयता शामिल है जो समानता की मांग करते हुए सांस्कृतिक सम्मान बनाए रखती है; साथ ही अलग-अलग धार्मिक विचारों के प्रति खुलापन और भाषा और उसके रचनात्मक उपयोग का महत्व। यह कृति निश्चित रूप से दो दृष्टिकोणों को जोड़ती है, रहमान (लेखक और कवि) और बंगाली राष्ट्र के पिता शेख मुजीब का।
रहमान कई विधाओं में विपुल हैं और कविता और नाटक का यह मिश्रण एक अनूठी आवाज़ बनाता है। अंतरंग व्यक्तिगत पारिवारिक यादें, अलग-थलग ऐतिहासिक कथन और पाठक/दर्शकों की सामाजिक और राजनीतिक अंतरात्मा को लगातार अपील करना एक ऐसी तीव्रता पैदा करता है जो अकल्पनीय सा है। ऐसे में प्रारूप/प्रस्तुति, चेतना के साथ-साथ अंतरात्मा की धारा बन जाती है। रहमान समय की अवधारणा के साथ खेलते हैं। लगभग पूरा एकालाप वर्तमान काल में सेट है; चाहे वह वर्तमान शेख मुजीब के कारावास के दौरान हो, उनके बचपन के दौरान हो या ऐसा वर्तमान जो पाठक के दृष्टिकोण से इतना समकालीन हो कि वह भविष्य बन जाए।
एकालाप तारीखों और महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाओं से भरा हुआ है, जो निष्पक्ष और अकाट्य रूप से प्रस्तुत किए गए हैं और इसलिए एक महान राजनेता और वक्ता की घोषणाओं को इन पर टिके रहने दिया जाता है, जो काव्य कथा के भीतर मजबूती से टिकी हुई हैं।
यह हमारे लिए भी इंसान बनने का समय है। भविष्य में पाठक की जिम्मेदारी स्पष्ट है, सार्वभौमिक अर्थों में परिवार की समावेशिता का महत्व और दुनिया भर में असमानता और गरीबी को दूर करने के लिए इसके प्रति प्रतिबद्धता।
कई सवालिया निशान हैं। यहाँ कोई जवाब नहीं है। हमें वही दिया जाता है जिसे हमें तथ्यों के रूप में स्वीकार करना चाहिए और लगातार यह सवाल किया जाता है कि हम उस इंसान के सपने को पूरा करने के लिए क्या करेंगे जो शेख मुजीब के नाम से जाना जाता है।
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