महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। परिणामों में भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन ‘महायुति’ को अप्रत्याशित जीत मिली है। 288 सीटों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में महायुति को 235 सीटें मिलीं हैं। भारतीय जनता पार्टी को 135 , शिवसेना शिंदे को 57 और अजित पवार की एनसीपी को 41 सीटें मिलीं हैं। महा विकास अघाड़ी को महज 46 सीटों पर संतोष करना पड़ा है, जिसमें शरद पवार की एनसीपी को 10 , कांग्रेस को 16 और शिव सेना उद्धव गुट को 20 सीटें मिलीं हैं।
देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री पद पर आसीन हो चुके हैं। इन सबके बीच तमाम चुनावी चर्चाएं भी हुई हैं, जिनमें वहाँ की स्थिति, चुनावी मुद्दों, नेताओं के पद पाने की संभावनाओं के साथ ही क्या चला और किसपर मतदाताओं ने ध्यान नहीं दिया जैसी बातों पर विमर्श हो रहे हैं।
चुनाव परिणामों के आने के बाद महायुति ने कुछ दिनों तक मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा नहीं की थी। अटकलों का दौर चल पड़ा कि कौन अगला मुख्यमंत्री बनेगा। फडणवीस का कद और प्रभाव काफी बढ़ चुका है, इसलिए बातचीत में फडणवीस का नाम कई बार उछला। यह भी चर्चा हुई कि फडणवीस केंद्र में एडजस्ट किये जा सकते हैं और महाराष्ट्र की कमान शिंदे को दी जा सकती है। फिर, नारायण राणे और विनोद तावड़े का नाम भी कई लोगों ने लिया। राणे बेहद अनुभवी हैं और तावड़े का सिक्का चल रहा है। लेकिन इस बात से किसी ने इंकार नहीं किया जा सकता कि राणे का प्रभुत्व कुछेक क्षेत्रों तक ही सीमित है और तावड़े को सर्वसम्मति नहीं मिल पाई। एकनाथ शिंदे और अजित पवार को उपमुख्यमंत्री बना दिया गया है, और फडणवीस मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं।
महाराष्ट्र चुनाव से पहले महायुति सरकार ने ‘माझी लाड़की बहन योजना’ लागू की। इस योजना के तहत ढाई लाख से कम वार्षिक आय वाले परिवारों की 21-65 वर्ष की महिलाओं के खाते में 1500 रूपए प्रतिमाह दिया जाने का प्लान है। विपक्ष ने चुनाव के दौरान कहा कि यह योजना अच्छे से प्लान नहीं की गयी थी और यदि MVA सरकार बनाती है तो इस योजना के तहत मिलने वाली धनराशि को बढ़ा दिया जायेगा।
महिलाओं ने इस चुनाव में बढ़-चढ़कर वोट डाले। करीब 65 प्रतिशत महिलाओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। जो 2019 के चुनाव से करीब छह फीसदी अधिक है। महिलाओं की बढ़ी हुई वोटिंग न केवल ग्रामीण क्षेत्रों में हुई बल्कि मुंबई और अन्य बड़े शहरों में भी इसे देखा गया। पिछले साल मार्च में लागू की गयी महिला सम्मान योजना के तहत महिलाओं को महाराष्ट्र परिवहन निगम की बसों में मात्र 50 प्रतिशत किराया ही देना पड़ रहा है। कुछ लोगों ने बताया कि इस योजना का असर भी महिलाओं का वोट प्रतिशत बढ़ाने में देखने को मिला है।
चुनाव से कुछ समय पहले तक चल रही मराठा आरक्षण की मांग भी चुनाव आते-आते धराशायी हो गयी। कुछ लोगों ने इसे शरद पवार प्रायोजित बताया। मराठा आरक्षण की मांग जिस तरह से सड़कों तक पहुंची थी वह धीरे-धीरे गायब होने लगी और चुनाव से पहले ही विलुप्त सी हो गयी। मराठा वोटबैंक MVA के पास से महायुति की तरफ शिफ्ट भी हुआ।
दोनों गठबंधनों के बीच के समन्वय का भी काफी गहन विश्लेषण किया गया। महायुति में अलग-अलग गुटों के बीच समन्वय न बन पाए के सभी कयास गलत ही साबित हुए। चुनाव परिणामों और कुर्सियों के चयन में अभी तक कोई खास रस्साकसी देखने को नहीं मिली है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का जमीनी काम सबकी नज़रों खासकर मीडिया की नज़रों से दूर रहा लेकिन इसने अपना रंग दिखाते हुए महायुति की सुदृढ़ जीत को सुनिश्चित किया है। लोकसभा चुनाव परिणामों के कुछ समय बाद ही आरएसएस की एक सभा में इसकी रणनीति बनाकर योजनाबद्ध तरीके से खूब मेहनत की और प्रत्यक्ष रूप से वह सफल भी हुई है।
किसानों के मुद्दे को किसी भी दल ने प्रमुखता से नहीं उठाया, न ही बिजली, पानी, सड़क, आवास, रोजगार जैसे जनता से जुड़े मुद्दों पर खुलकर बहसें हुईं। महाराष्ट्र में खेती के पैटर्न बदल चुके हैं, वहाँ के कई जिलों में अब उत्तर प्रदेश, बिहार और यहाँ तक कि नेपाल के मजदूर पहुंचकर ठेकों पर खेती कर रहे हैं। सतारा और आसपास के क्षेत्रों में पानी की किल्लत इतनी ज्यादा है कि वहाँ टैंकर माफिया तक सक्रिय हैं। लेकिन यह मुद्दे चुनावी मुद्दे नहीं बन पाए। ‘बटेंगे तो कटेंगे’ और ‘वोट जिहाद’ जैसे नारों का असर जमीन पर खूब दिखाई पड़ा। अलग-अलग जातियों के वोट भी महायुति की तरफ शिफ्ट हुए और उसकी जीत में सहयोगी बने। मतलब कि हिंदुत्व का मुद्दा महाराष्ट्र में वोटरों के लिए एक यूनिफाइंग फैक्टर बन कर उभरा। डॉ अम्बेडकर के विचारों और दलित विमर्श करने वाली पार्टियों को कुछ खास सफलता मिलती नहीं दिखाई दी।
लोकसभा चुनाबों में NDA की जीत भले ही कम मार्जिन की रही हो, केंद्र में वापसी ने भी महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में असर डाला है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता। कुलमिलाकर, वहाँ की जनता ने एक बार पुनः महायुति को मौका दिया है। फडणवीस के शासनकाल में जनता से जुड़े मुद्दों पर कितना काम होता है यह हम अगले पांच साल में देखेंगे ही।