Monday, December 23, 2024
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अब कानून अँधा नहीं

photo- x.com से

 

भारत के मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ का अंदाज़ कुछ अलग है। अपने वक्तव्यों और पैनी नज़र के लिए प्रसिद्ध श्री चंद्रचूड़ ने अब न्याय की प्रतिमूर्ति लेडी जस्टिस की प्रतिमा में बदलाव करवा दिए हैं। सर्वोच्च न्यायलय के न्यायधीशों की लाइब्रेरी में लगाई गयी नई मूर्ति के आँखों पर पट्टी नहीं है और बाएं हाथ में तलवार की जगह संविधान है। नई मूर्ति को भारतीय परिधान में दिखाया गया है।

भारतीय कानून की मूर्ति एक महिला को आँखों में पट्टी बंधे, दाहिने हाथ में तराजू और बाएं हाथ में तलवार लिए देखा जाता रहा है। जहाँ ज्ञानी लोग आँखों की पट्टी के बारे में कहते थे कि इसका मतलब है कि कानून सभी के लिए एक समान और वस्तुनिष्ठ है, वहीं दूसरी तरफ फिल्मो से लेकर आम जनमानस के बीच कानून के अँधा होने की बात भी प्रचारित रही है। तलवार को दंड के प्रतीक के तौर पर देखा जाता रहा है। मूर्ति के आँखों की पट्टी हटाना यह दर्शाता है कि कानून अँधा नहीं है और सबको एक दृष्टि से देखता है। वहीं तलवार की जगह संविधान को दंड के स्थान पर न्याय के प्रतीक के रूप में देखा जा रहा है।

लेडी ऑफ़ जस्टिस की प्रतिमा भारत में ब्रिटिश काल में १८वीं सदी में सार्वजनिक रूप से स्वीकार्य हुई। आँख पर पट्टी बांधे और हाथ में तराजू और तलवार लिए इस प्रतिमा के उद्भव की कहानी यूनानी सभ्यता से जुडी हुई है।

जिस देश की कचहरियों में मुकदमों की लम्बी लिस्ट बरकरार रहती हो और यह कहा जाता हो यहाँ के कानून का जाल ऐसा है कि इसमें से बड़ी मछली निकल जाती है और छोटी मछली फंस जाती है, वहां इस तरह के, सांकेतिक ही सही, बदलाव को सकारात्मकता से देखा जाना गलत नहीं है।

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