दिन भर पूरे शहर में बड़े-बड़े बैग लिए खाने और सामान के डिलीवरी करने वाले हों, या प्राइवेट टैक्सी कंपनियों में चार पहिया दौड़ा रहे कर्मचारी हों, अर्थव्यवस्था में काम करने का मॉडल पहले से बहुत बदल चुका है। जहाँ एक और यह विभिन्न उद्योगों में श्रमिकों को लचीलापन और स्वायत्तता प्रदान करता है। पहले फिल्म और कला के क्षेत्र में प्रयोग किया जाने वाला शब्द ‘गिग’ अब इस तरह के अनौपचारिक काम के लिए भी प्रयोग किया जाने लगा है। छोटे और कम समय के काम को गिग वर्क में रखा जाता था, लेकिन जैसे-जैसे आबादी बढ़ रही है, बड़े-बड़े उद्योगों के बहुत से काम गिग वर्कर्स के माध्यम से किये जाने लगे हैं। डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से मध्यस्थता की जाने वाली गिग वर्क की अनौपचारिक प्रकृति, निष्पक्ष श्रम प्रथाओं को सुनिश्चित करने और श्रमिकों के अधिकारों की सुरक्षा में अलग तरह की चुनौतियाँ पेश करती है । गिग वर्कर्स के बुनियादी सुविधाओं के अधिकार के लिए चिंता बढ़ रही है क्योंकि वे एक नौकरी से दूसरी नौकरी में जल्दी से चले जाते हैं और उनके पास कोई ठोस कानूनी सुरक्षा नहीं होती है, और कई बार यह उनके लिए बेहद कठिन हो सकता है।
गिग कर्मचारी अक्सर ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से काम पाते हैं जो उन्हें उन लोगों से जोड़ते हैं जिन्हें उनकी सेवाओं की आवश्यकता होती है। ये प्लेटफ़ॉर्म बिचौलियों के रूप में कार्य करते हैं, जो श्रमिकों और उन्हें काम पर रखने वालों के बीच संबंधों का प्रबंधन करते हैं। मसलन आप ओला, उबर, जोमाटो, या डोमिनोस जैसे अप्प्स के माध्यम से अपनी आवस्यकता के अनुसार सामान या वाहन बुक कर सकते हैं। काम के प्रकार के हिसाब से आपको किसी एक या कुछ व्यक्तियों से जोड़ दिया जाता है, जिनमे में आप चयन कर अपने काम की सामग्री या सुविधा का लाभ उठा सकते हैं।
गिग वर्कर वह व्यक्ति होता है जो पारंपरिक नियोक्ता-कर्मचारी संबंधों की सीमाओं से बाहर, अक्सर एक स्वतंत्र ठेकेदार के रूप में, अस्थायी या अल्पकालिक कार्य व्यवस्था में संलग्न होता है। सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 [धारा 2(35)] के अनुसार, गिग वर्कर को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया जाता है जो कार्य करता है या कार्य व्यवस्था में भाग लेता है और ऐसी गतिविधियों से स्वतंत्र रूप से कमाता है। इस परिभाषा में विभिन्न भूमिकाएँ शामिल हैं, जिनमें राइडशेयरिंग ड्राइवर, फ़ूड डिलीवरी कूरियर, फ्रीलांस लेखक, ग्राफ़िक डिज़ाइनर और अन्य सेवा प्रदाता शामिल हैं जो प्रोजेक्ट-दर-प्रोजेक्ट आधार पर अपनी विशेषज्ञता प्रदान करते हैं।
भारत गिग वर्कर्स के लिए दुनिया के शीर्ष स्थानों में से एक बन गया है। विश्व भर में फ्रीलांसरों का लगभग 40 प्रतिशत भारत में हैं। यह अनुमान लगाया गया है कि 2025 तक भारत में 350 मिलियन गिग जॉब्स हो सकती हैं ।
एक सर्वेक्षण के मुताबिक गिग वर्क से जुड़ी समस्याओं के बारे में कई तथ्य सामने आए हैं, जिनमें लंबे समय तक काम करना, घर के खर्चों को पूरा करने के लिए कम कमाई, प्लेटफ़ॉर्म द्वारा मनमाने ढंग से पहचान (आईडी) को निष्क्रिय करना और ब्लॉक करना, और उच्च शारीरिक और मानसिक तनाव आदि शामिल हैं।
इस तरह के काम में काम करने पर ही पैसे मिलते हैं, जिस कारण सप्ताह में एक भी दिन की छुट्टी लेने का मतलब अपना नुकसान करना है। छुट्टी की कमी से इन श्रमिकों की मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। इसके अलावा प्रति डिलीवरी के लिए दी जाने वाली राशि और तय की जाने वाली दूरी में भी काफी विषमताएं हैं। एक ऐसे ही डिलीवरी बॉय ने बताया कि पहले उसे तीन किलोमीटर सीमा-क्षेत्र में सामान पहुँचाने के लिए पचीस रूपए से भी कम मिलते थे, अब राशि वही है लेकिन सीमाक्षेत्र 5-6 किलोमटर कर दिया गया है।
कैब चालकों और डिलीवरी करने वाले व्यक्तियों की मासिक आय मूल वेतनमान से कम है, जिससे घरेलू खर्च चलाने में कठिनाई होती है। इसके अलावा ऑनलाइन रेटिंग सिस्टम बना हुआ है, जिसमे ग्राहक अपनी इच्छा के अनुसार गिग वर्कर्स को अंक देता है, जिसका प्रभाव उनको मिलने वाले अगले काम पर पड़ता है।
कुछ क़ानूनी प्रावधान बनाये गए हैं जिनसे गिग वर्क्स को एक तरह का सोशल सेफ्टी नेट प्रदान किया जा सके। हालाँकि जमीनी स्तर पर इनकी जानकारी काफी कम है, और दूसरे सब कॉन्ट्रैक्ट के इस तरह के कामो में पीएफ, इन्शुरन्स जैसी बातें अभी कागज़ी ही लगती है। इस कारण गिग वर्कर्स का अनियमित तौर पर बिना किसी सुरक्षा के काम करते रहना एक नियम बन गया है। एक गिग वर्कर्स ने बताया कि उसके साथ का एक लड़का डिलेवरी देने के लिए जाते समय सड़क दुर्घटना का शिकार हो गया। यह उस कंपनी में कार्यरत एक स्थानीय व्यक्ति की भल मन्साहत थी कि उसने कम्पनी पर दबाव लेकर पीड़ित के परिवार को कुछ मुआवज़ा दिलवा दिया , लेकिन सवाल यह है कि ऐसी भलमनसाहत वाले लोग कितने हैं, इस आधार पर गिग वर्कर्स की सुरक्षा की बात नहीं की जा सकती। वह अतार्किक है।
भारत में गिग इकॉनमी के क़ानूनी पहलुओं पर आने वाले दिनों में एक लेख प्रकाशित किया जायेगा।