रायबरेली, 23 नवंबर। रायबरेली शहर पहले दो-चार मोहल्लों तक सीमित था। शहर में एक स्टेडियम और कुछ क्रिकेट ग्राउंड्स (अक्सर खाली पड़े मैदान) शहर के ज्यादातर लोगों की आवश्यकताओं को पूरा कर देते थे। लेकिन धीरे-धीरे शहर का विस्तार होता जा रहा हैं, अब सभी मोहल्लों के नाम याद रखना भी आसान नहीं हैं। स्टेडियम का साइज पहले से बदल गया है, और मोहल्लों के खाली जगहें भी अब नहीं बच रहीं हैं। जहाँ कहीं पार्क बने भी हैं वे दुर्दशा का शिकार हैं और कई जगहों पर अतिक्रमण में गायब होते जा रहे हैं। कुछ निजी संस्थान बच्चों के लिए डांस और मार्शल आर्ट्स के क्लासेज चला रहे हैं। यहाँ यह कहना भी जरुरी हैं कि समाज का हर वर्ग निजी संस्थानों में बच्चों को कुछ सीखने के लिए नहीं भेज सकता हैं। इसके लिए सरकारी सुविधाओं का होना जरुरी है, लेकिन फिलवक्त ऐसी सरकारी सुविधाएं गायब लगती हैं। अभिभावकों से इस विषय पर बात करने पर कई तरह के सुझाव आये। पहलेपहल तो शहर में जितने पार्क बने हुए हैं उनकी साफसफाई, लाइटिंग, रखरखाव को नियमित करना होगा, ताकि बच्चे अपने गार्जियंस के साथ वहाँ कुछ समय बिता सकें। दूसरे, दो-चार मोहल्लों के बीच एक ठीक-ठाक मैदान होना चाहिए, ताकि हर रोज न सही लेकिन कभी-कभार तो लोग अपने बच्चों को खेलकूद के लिए वहाँ ले जा सकें। तीसरे, इन मैदानों के भीतर और आसपास cctv कैमरे और गेटिंग होनी चाहिए, ताकि बच्चों के लिए सुरक्षित माहौल बनाया जा सकें।
एक ओर जहाँ बाल-अधिकारों के प्रति लगातार इतने विमर्श चलते रहते हों, और बड़े स्तर पर सरकारी योजनाएं लागूं हों, वहीँ शहर में बच्चों के लिए ठीक-ठाक खेल के मैदान न हों और न ही किसी तरह के प्रशिक्षण की सुविधाएं, तो हम किस तरह के भविष्य के रास्ते जा रहे हैं , यह सोचने का विषय है।