रायबरेली में इन दिनों जिला अस्पताल और एम्स को लेकर बहुत कुछ निराशावादी पढ़ने को मिल रहा है। सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का इस तरह से कमजोर, लचर और मजबूर होना जनता के लिए कष्टकारी है। बैसवारा क्षेत्र में यह कहा जाता हो कि बीमारी और कोर्ट केस किसी को भी एक पीढ़ी पीछे ले सकते हैं। निजी व्यवस्था उपलब्ध तो है लेकिन सबके लिए उस हिसाब से खर्च कर पाना संभव नहीं है। आगे कुछ लिखने से पहले यह कहना जरुरी है कि सवाल किसी की काबिलियत पर नहीं है, बल्कि रवैय्ये पर है।
दक्षिण भारत का अरविन्द नेत्र चिकित्सालय/अरविन्द आई हॉस्पिटल एक ऐसा उदाहरण है जिसने स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े हुए तमाम मिथकों को तोड़ा है। तमिलनाडु के मदुरै में डॉ. गोविंदप्पा वेंकटस्वामी ने इसकी स्थापना 1976 में की थी । यह नेत्र अस्पतालों के एक नेटवर्क के रूप में विकसित हुआ है और भारत में मोतियाबिंद से संबंधित अंधेपन को खत्म करने में इसका बड़ा प्रभाव रहा है। 2012 तक, अरविंद ने लगभग 32 मिलियन (तीन करोड़ बीस लाख) रोगियों का इलाज किया है और 4 मिलियन (चालीस लाख) सर्जरी की हैं। मोतियाबिंद भारत में अंधेपन का एक प्रमुख कारण है। समय पर इलाज और सर्जरी से मोतियाबिंद के अंधेपन से बचा जा सकता है। ऐसा कहा जाता है कि डॉ वेंकटस्वामी मैकडोनाल्ड्स फास्टफूड के मॉडल और सर्विस डिलीवरी से प्रभावित होकर एक ऐसे नेत्र चिकित्सालय को बनाना चाहते थे जो ज्यादा से ज्यादा लोगों को मोतियाबिंद का सही उपचार प्रदान कर सके। अरविन्द आई हॉस्पिटल में गरीबों का इलाज मुफ्त या भारी सब्सिडी द्वारा किया किया जाता है,। अस्पताल की लागत निकलने के लिए भुगतान करने वाले मरीजों से एक क्रॉस सब्सिडी का मॉडल अपनाया गया है। वर्तमान में लगभग सत्तर प्रतिशत मरीजों का मुफ्त इलाज करने के बावजूद अरविन्द आई हॉस्पिटल घाटे में नहीं है। ग्यारह बेड से शुरू हुए इस अस्पताल अब 1600 से ज्यादा बेड हैं और सालाना करीब 23 लाख मरीजों की जांच की जाती हैं। इस अस्पताल ने सन 1992 में ऑरोलैब नाम से एक मैनुफैक्चरिंग यूनिट शुरू की जिसमे लेंस और कई उपकरण बनते हैं। इस यूनिट ने लेंस की कीमतों को दो सौ डॉलर्स से घटा कर पांच डॉलर क्र दिया हैं। इसके उपकरण दुनियाभर के करीब 80 देशों में निर्यात किये जाते हैं। इसके अलावा एक मैनेजमेंट एन्ड ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट भी संचालित हैं जो अरविन्द आई हॉस्पिटल के स्टाफ और देश-दुनिया के तमाम अस्पतालों को ट्रेनिंग देता हैं। इसके बदले में फीस ली जाती हैं। मोतियाबिंद के इलाज के लिए मुफ्त से शुरू होकर 28000 रुपए तक के प्रावधान हैं, जिसमें लेंस की लागत भी शामिल हैं।
अरविन्द आई हॉस्पिटल में मुफ्त इलाज कराने वाले ज्यादातर लोग दो से तीन हज़ार मासिक कमाने वाले परिवारों से होते हैं, जबकि केवल पंद्रह प्रतिशत के करीब मरीज पैसे देकर इलाज करवाते हैं। जांच और ऑपरेशन के बीच समय इस तरह से विभाजित किया गया हैं कि डॉक्टर एक मरीज पर लगने वाले समय का 5 से 15 प्रतिशत तक खर्च करते हैं, जबकि बाकी समय स्टाफ, नर्सेज और जूनियर डॉक्टरों मरीज की जांचें और देखभाल का काम किया जाता हैं। अरविन्द आई हॉस्पिटल रेगुलर स्टाफ और ट्रेनीस के बीच 60 -40 का अनुपात रखता है और एक डॉक्टर पर चार ट्रेंड स्टाफ है, इससे न केवल गुणवत्ता में सुधार होता है, मरीजों की बेहतर देखभाल होती है, बल्कि अस्पताल की लागत भी कम आती है। जिसके परिणाम स्वरुप और ज्यादा मुफ्त या सब्सिडाइज़्ड इलाज किये जाते हैं। अपनी दूरदर्शिता और समाजसेवा की भावना से अरविन्द आई हॉस्पिटल न केवल हर साल लाखों लोगों की आँखों का कम दामों में इलाज कर रहा है बल्कि आज उसके चौदह आई हॉस्पिटल्स, 6 आउटपेशेंट एग्जामिनेशन सेंटर्स और 101 प्राइमरी आई कायर फैसिलिटीज संचालित हैं।
अरविन्द आई हॉस्पिटल और डॉ वेंकटस्वामी भारतीय स्वास्थ्य सेवाओं के लिए एक बहुत सरल और प्रभावी सन्देश हैं कि बिना ज्यादा पैसे लिए भी देश की जनता को बीमारियों से दूर रखा जा सकता है। हो सकता है रायबरेली वाले भी कुछ इससे सबक ले सकें!