लखनऊ, 19 दिसंबर। एम ट्रस्ट और शिवी डेवलपमेंट सोसाइटी की ओर से आयोजित भारतीय न्याय संहिता के महिलाओं के लिए आये प्रावधानों पर हुई राज्य स्तरीय परिचर्चा में प्रदेश के कई बुद्धिजीवियों, उच्च न्यायालय के अधिवक्ताओं और समाजसेवियों ने अपनी बात रखी। परिचर्चा में एम ट्रस्ट के संजय राय ने बताया कि भारतीय न्याय संहिता में बहुत से ऐसे बदलाव किये गए हैं, जिनसे एक्सेस टू जस्टिस यानी आम आदमी की न्याय तक पहुँच बढ़ जाती है। इसमें साइबर अपराधों, महिला के बयान लेने के लिए महिला पुलिस की उपस्थिति अनिवार्य करने जैसे सकारात्मक कदम उठाये गए हैं। इससे कम-से-कम व्यवस्था में कुछ सुधार होने की उम्मीद तो है। वहीँ उच्च न्यायालय लखनऊ की अधिवक्ता नंदिनी वर्मा ने कहा कि इसमें महिलाओं और बच्चों के लिए काफी बदलाव किये गए हैं। पहले इतने सख्त कानून नहीं थे, या हमने महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में नहीं रखा था , लेकिन अब हम देखते हैं कि महिला मजिस्ट्रेट ही महिला का बयान लेगी, और अगर कोई बलात्कार का पीड़ित है तो उसका बयान वीडियो या ऑडियो फॉर्मेट में ही होगा। पहले बुजुर्गों को थाने बुलाने की सीमा 65 वर्ष थी अब इसे 60 वर्ष कर दिया गया है। अब महिला की कंसेंट की आयु 15 वर्ष से बढाकर 18 वर्ष कर दी गयी है। यह एक बहुत बड़ा बदलाव है। इसको ज़मीनी रूप में सही ढंग से इम्प्लीमेंट करके ही हम एक बेहतर समाज की स्थापना कर सकते हैं।
सामाजिक कार्यकर्त्ता नाज़ फ़ातमा ने इस महिलाओं के लिए आये नए कानून को सामाजिक दृष्टिकोण से समझाने का प्रयास किया। वहीँ महिलाओं के अधिकारों के प्रति कार्यरत गौरव राजपूत ने भी साइबर क्राइम से सम्बंधित प्रश्नों पर अपनी बात रखी।
भारतीय सामाजिक और न्यायिक प्रणाली में महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गो के प्रति होने वाले अलग-अलग तरह के अपराधों को लेकर बहुत से पूर्वाग्रह और दबी हुई सोच दिखाई पड़ती रही है। समाज के आगे बढ़ने के लिए महिला और बच्चों को, जिन्हे मोस्ट वल्नरेबल ग्रुप्स की श्रेणी में रखा जाता है, सुरक्षित माहौल देना जितनी ज़िम्मेदारी कानून की है उतनी ही समाज की भी। आज हुई परिचर्चा ने ऐसे तमाम पहलुओं पर बातें रखी गयी हैं। जरूरत ऐसे कार्यक्रमों की सततता, कानून के सही अनुपालन और सामाजिक मानसिकता में बदलाव की है।