Tuesday, January 14, 2025
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नहीं बदलती छुटभैयों की आदतें और न ही खत्म होते अपराध

रायबरेली, 30 नवंबर। जनपद में आये दिन किसी न किसी तरह के विवाद की खबरें आती रहती हैं। जर, जोरू और जमीन के विवाद तो रहते ही हैं, साथ में ही छुटभैयों की ड्रामेबाजी भी किसी न किसी रूप में चालू रहती है। मिलन वैष्णव के मुताबिक राजनीति और गुंडागर्दी के गठजोड़ के कारण ऐसे घटनाक्रम भारत के कई राज्यों में देखने को मिलते हैं। प्रशासन का लचर रवैय्या इसका सहयोगी हो सकता है और ‘इसमें क्या गलत है’ ऐसा मानने वालों का भी। अपराधविज्ञान के सिद्धातों में भी इसके विवरण मिल जाते हैं। कोई सटीक कार्यवाही न हो जाने और बचा लिए जाने के कारण बहुत से अलग-अलग लेवल के अपराधी घटनास्थल के आसपास वापस जाने पर विजयी महसूस करते हैं। यह मनोबल बढ़ाने वाला फैक्टर होता है और कहीं-कहीं उनकी आपराधिक प्रवृत्ति को दोहराने वाला भी। सामाजिक रूप से धर्म-जाति जोड़कर भी इसे देखा-समझा जा सकता है। नेता, दलाल और धनाढ्य व्यक्तियों के सम्पर्क में बने रहने को एक तरह से प्रोटेक्टिव कवर माना जाता है, इसके फायदे दोनों पक्षों को हैं। इस बात का जिक्र भी वैष्णव ने किया है।
समाजशास्त्री यह भी कहते हैं कि सामाजिक संरचना में मूल्यों के क्षरण से भी ऐसी प्रवृत्तियां जारी रहती हैं। कहीं-कहीं गरीबी-बेरोजगारी भी अपराध बढ़ने का कारण बनते हैं। इसके अलावा गेटेड कॉलोनियाँ न होने और निवासियों में मेलमिलाप न होने से भी अपराधों का ग्राफ बढ़ने की सम्भावना होती है। पुलिसिंग प्रिवेंटिव से ज्यादा रिएक्टिव है, इसलिए भी मनबल बढ़ता है। बहरहाल, यह समाज को तय करना है कि वह किस रास्ते पर बढ़ना चाहता है।

 

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