बांग्लादेश के मेरे पिछले लेख, जिसमें वहाँ महिलाओं की स्थिति का वर्णन किया गया था, पर एक अजीबोगरीब प्रतिक्रिया आयी है। बांग्लादेश के सैन्य संचालित संस्थान से पढ़ी और अब विदेश में रह रही एक युवती ने कहा कि तुम भारत के मुद्दों पर क्यों नहीं लिखते? बांग्लादेश पर लिखने की जरूरत नहीं है। अगला तर्क यह था कि तस्लीमा नसरीन और अनीसुर जैसे लोग देश के बाहर के विचारों से प्रभावित होकर ऐसी बातें करते हैं। गलत क्या कहा इस नई पीढ़ी के एक प्रतिनिधि ने ? हिंसा का विरोध, कट्टरपंथ को बुरा कहना, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात करना “बाहर” के विचार ही तो हैं। वरना, सब सही ही तो है, माने अध्यापकों को जबरदस्ती बर्खास्त कराया जाना, राहुल आनन्दा और ऋत्विक घटक के घरों को जलाना, अल्पसंख्यक समुदाय को प्रताड़ित किया जाना “अंदर का मुद्दा”, और इन सबका विरोध बाहर का !
बहरहाल, लोगों का काम है कहना। तस्लीमा नसरीन ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म x पर दो दिन पहले जो लिखा उसे पढ़े जाने की जरूरत है –
“नोबेल शांति पुरस्कार का शांति से कोई वास्तविक संबंध नहीं है। अगर शांति से कोई संबंध होता तो रोहिंग्या को म्यांमार में उत्पीड़न का सामना नहीं करना पड़ता और न ही उन्हें अपना देश छोड़ना पड़ता। आंग सान सू की ने रोहिंग्या के मानवाधिकारों के समर्थन में एक शब्द भी नहीं कहा है। अशांति फैलाने वाले कई लोगों को नोबेल शांति पुरस्कार मिला है; 1939 में एक स्वीडिश सांसद ने हिटलर को यह पुरस्कार देने का प्रस्ताव भी रखा था। फिलिस्तीन के यासर अराफात, यित्ज़ाक राबिन और इज़राइल के शिमोन पेरेज़ को 1994 में ओस्लो समझौते पर काम करने के लिए पुरस्कार मिला, जिससे शांति नहीं आई बल्कि इसके बजाय भयंकर अशांति पैदा हुई। हेनरी किसिंजर को भी 1969 और 1970 में कंबोडिया पर बमबारी करने के बावजूद शांति पुरस्कार मिला। बराक ओबामा को अफगानिस्तान, पाकिस्तान, लीबिया, इराक और यमन में युद्ध में शामिल होने के दौरान शांति पुरस्कार दिया गया था। अर्थशास्त्री के रूप में जिस अर्थशास्त्री को अर्थशास्त्र के बजाय शांति का नोबेल मिला, वह इस देश के लोगों को क्या शांति प्रदान कर रहा है? इस्लामवादी देश के परिदृश्य को बदल रहे हैं, और ऐसा लगता है कि वह लोगों द्वारा झेली जा रही अत्यधिक अशांति से बेखबर हैं। उनकी पीड़ा को संबोधित करने के बजाय, वह अपने बुढ़ापे में अपने दुश्मन से बदला लेने के लिए मिले अवसर से इतना मोहित हो गया है कि तीन महीने बाद भी वह उस बटन को दबाते हुए विस्मय की स्थिति में है जिसे दबाने के लिए उसे कहा गया था।”