कई विकसित देशों में धीरे-धीरे शहर के मुख्य बाज़ारों और पर्यटन स्थलों के आसपास के थोड़ी दूर के क्षेत्र में चार पहिया वाहनों के आवागमन पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। बाइकिंग और पैदल यातायात को बढ़ावा देने के पक्ष में कारों पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है या उस दिशा में सख्ती बरती जा रही है। कारों पर प्रतिबंध लगाने के स्पष्ट पर्यावरणीय लाभों के अलावा, शहरों में यातायात में कमी से स्वास्थ्य, खुशी, कनेक्टिविटी और बहुत कुछ बेहतर हुआ है!
हालांकि सभी शहर और कस्बे पूरी तरह से कार-मुक्त संस्कृति को अपनाने के लिए तैयार नहीं हो सकते हैं, लेकिन ऐसे दर्जनों तरीके हैं जिनसे कारों और अन्य चार पहिया वाहनो के आवागमन को नियंत्रित कर परिवहन के अन्य साधनों को बढ़ाया जा सकता है। उदाहरणों में सीधे प्रतिबंध, टोल में वृद्धि और बाइक और पैदल चलने वालों के लिए बेहतर बुनियादी ढाँचा शामिल हैं। इससे पहले कि हम इस तरह के प्रतिबंधों से होने वाले लाभ के बारे में जाने, पहले जरा अपने शहर के हालात का एक रिवीजन कर लेते हैं। शहर में वर्तमान में कोई भी ऐसा बाजार नहीं दिखाई देता जहाँ चार पहिया वाहनों का आवागमन न हो। फ़िलहाल अभी कहीं भी पार्किंग की पर्याप्त व्यवस्था निजी या सरकारी किसी तरह से नहीं है। पैदल आने-जाने या साइकिलों के लिए कहीं भी अलग मार्क्ड रास्ते नहीं हैं- यह तर्क दिया जा सकता है कि डिग्री कॉलेज के आसपास और इंदिरा नगर की तरफ ऐसे रास्ते बने हैं, लेकिन उनकी स्थिति आप स्वयं जानते हैं। जिस अनुपात में निजी वाहनों की संख्या बढ़ी है उस अनुपात में शहर की क्षमता नहीं है। इसका नजरिया देर शाम किसी भी मोहल्ले में जाकर देखा जा सकता है, हालाँकि वह थोड़ा अलग मुद्दा है , इसलिए उस पर फिर कभी चर्चा होगी। साइकिल रिक्शा पहले की तुलना में कम दिखाई देते हैं, लेकिन जिस हिसाब से इ-रिक्शा बढे हैं वह आपको शहर के ज्यादातर हिस्सों में किसी भी समय उचित दाम पर पहुंचा सकते हैं।
अब सवाल पार्किंग का उठता है। सुपरमार्केट में एक छोटी पार्किंग संचालित है, लेकिन वाहनों के अनुपात में इसकी क्षमता काफी कम है। कैपरगंज की समस्या किस से छुपी है? कोतवाली रोड, कचेहरी रोड, अस्पताल चौराहा से पुलिस लाइन का रास्ता और चंदापुर मंदिर का चौराहा- हर जगह दिन में किसी न किसी समय जाम लग ही जाता है। फिर क्या गाडी और क्या पदयात्रा?
वैसे तो प्रदूषण के आंकड़े थोड़ी खोज करने पर मिल ही जायेंगे, लेकिन शुद्ध हवा अब लक्ज़री होती जा रही है। पेड़ जयादा बचे नहीं है और वाहनों की बेतरतीब बढ़ोत्तरी ने वायु को घातक रूप से अशुद्ध करना शुरू कर दिया है।
अनियत्रित भीड़ और असीमित वाहन अपराध बढ़ने का कारण भी बनते हैं। फिर, आये दिन गाड़ियों के टकराने, विवाद होने और मारपीट होने तक की खबरें सामने आती रहतीं हैं। चूँकि लोग पुलिस तक जाना नहीं चाहते या कई बार बेरंग लौटा दिए जाते हैं तो फिलहाल ऐसी घटनाओं के आधिकारिक आंकड़े कम हो सकते हैं।
पैदल चलने और साईकिल चलाने की पर्याप्त जगह न होने से भी स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। शहर के डॉक्टर आपको इस बारे में ज्यादा विस्तार से बता सकते हैं। हम जैसे बहुत से लोगों को याद है कि साईकिल से पूरे शहर का चककर लगा लेने में भी कोई खास दिक्कत नहीं होती थी। ठीक बात है अब गाडी खरीद लेना या दहेज़ इत्यादि तामझाम से पा लेना आसान हुआ है, यह विचारणीय बात है कि क्या वाहन आवश्यकता के लिए सड़क पर दौड़ते रहते हैं, एक लक्ज़री के तौर पर या दिखावे के लिए? जवाब आप खुद जानते हैं, यहाँ तो बस दोहराया जा रहा है।
लब्बोलुआब यह है कि अगर निकट भविष्य में इस पर कुछ सख्त और प्रभावी कदम नहीं उठाये गए तो सेहत का निजी नुकसान तो आमजन सहेंगे ही, पुराने मुख्य बाज़ारों से ज्यादा सुविधाजनक बाज़ारों और ऑनलाइन खरीददारी का क्रेज बढ़ेगा । इस बार इतना ही।