सत्यनगर की बेतरतीब पार्किंग की खबर की प्रतिक्रिया में बहुत से पाठकों ने बताया कि जिस हिसाब से चार पहिया वाहनों की संख्या बढ़ी है, उस हिसाब से कहीं भी पार्किंग व्यवस्था नहीं है। लोगों ने गाड़ियाँ तो खरीद लीं या कहीं से ले लीं या दहेज में पा गए, लेकिन पार्किंग के लिए अपने घरों में व्यवस्था है या नहीं इस पर ध्यान देना जरुरी नहीं समझा। अभी शहर में किसी सरकारी या प्राइवेट पार्किंग की भी इस तरह की व्यवस्था नहीं है। अगर देर रात कभी कोई इमरजेंसी पड़ जाए तो एम्बुलेंस या अग्निशमन विभाग की गाड़ियाँ कई जगहों पर नहीं पहुँच सकतीं, क्योंकि लोग अपनी गाड़ियों को सड़क किनारे खड़ी कर जाते हैं।
इससे विवाद भी बढ़ते हैं। लखनऊ से लेकर दिल्ली तक गलत पार्किंग को लेकर हुए विवादों में गोली चलने और मारपीट तक की खबरों को गूगल पर खोजा जा सकता है। रायबरेली में विवाद होते हैं, लेकिन अभी रिपोर्टेड घटनाएं कम हैं इसलिए यह समस्या उतनी बड़ी नहीं लगती।
जनता से बातचीत में सवाल यह भी उठा कि क्या ऐसे क़ानूनी प्रावधान हैं कि जिसके पास पार्किंग की जगह हो वही गाड़ी खरीद सके? और क्या बाज़ारों और रिहायसी इलाकों में पार्किंग के लिए कहीं जगहें हैं? इसके अलावा एक सुझाव यह भी आया कि जब शहर में इतने साईकिल- और ऑटो-रिक्शा चल रहे हैं तो आप अपनी चार पहिया लेकर ही क्यों निकलें?
दरअसल जब उपभोग की वस्तुओं को प्रदर्शन और दबंगई का प्रतीक या तरीका मान लिया जाता है तो यह तय है कि इससे सामान्य जन को परेशानी बढ़ेगी ही। अब इसके वैधानिक उपचार हों या सामाजिक समय के साथ होने भी तय हैं।
रही बात शहर में सरकारी पार्किंग व्यवस्था की तो निजी रूप से किये गए प्रयासों में मैं पिछले NDA कार्यकाल में केन्द्रीय आवास एवं शहरी मामलों के राज्यमंत्री रहे श्री कौशल किशोर के कार्यालय के माध्यम से शहर में पत्र भेजवा चुका हूँ। साथ ही, जनसुनवाई पोर्टल पर दो बार शिकायत कर चुका हूँ। यहाँ के जनप्रतिनिधियों और प्रशासन को इस पर कार्य करना होगा। साथ ही जनता को भी व्यावहारिक रूप से इस विषय पर मनन करना होगा।