रायबरेली। कुछ महीनों पहले अख़बारों में यह खबर निकली थी कि शहर के विस्तार होने के साथ-साथ नगर क्षेत्र के कुछ मोहल्लों को नगरपालिका में ले लिया गया है। उसके बाद इस पर एक गजट नोटिफिकेशन का इंतज़ार किया जाने लगा क्योंकि नोटिफिकेशन के बाद ही इन क्षेत्रों में नगरपालिका द्वारा विकास के कार्य करवाए जा सकते हैं। जनसुनवाई के माध्यम से डाले गए प्रार्थनापत्रों में यह जवाब बार-बार दिया जाता रहा है कि वे क्षेत्र अभी भी नगरपालिका के अंतर्गत नहीं आते हैं। क्या इस निर्णय को वापस ले लिया गया?
वहीँ लोक निर्माण विभाग को एक चौराहे के आसपास स्पीड ब्रेकर्स बनाने के लिए भेजी गयी एप्लीकेशन के जवाब में विभाग द्वारा यह कहा गया कि राजकीय राजमार्ग पर स्पीडब्रेकर्स बनाने का कोई प्रावधान नहीं है। ठीक है यदि प्रावधान नहीं हैं तो विभाग काम कैसे करवा सकता है।
इस बाबत तत्कालीन सिटी मजिस्ट्रेट से मिलकर जब पूरी बात बताई गयी तो उन्होंने सब कुछ धैर्य से सुनते हुए प्रार्थी को जिला पंचायत जाने की सलाह दे दी। उस दिन जिलाधिकारी महोदया उपलब्ध नहीं थीं और न ही जिला पंचायत के अभियंता।
रायबरेली शहर का जिस हिसाब से विस्तार होता जा रहा है उस हिसाब से बेसिक सुविधाओं की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। शहरीकरण एक ऐसी वास्तविकता है जिसे नकारा नहीं जा सकता। रोजगार और शिक्षा की तलाश में गावों से शहरों की तरफ का पलायन दुनियाभर में देखने को मिलता है। ऐसे में नीतिनिर्माताओं और जनप्रतिनिधियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे मूलभूत सुविधाओं को सभी तक पहुंचाएं। लोकतंत्र में जनता की भागीदारी केवल शिकायत करने तक सीमित रहने पर लोकतंत्र मजबूत नहीं होता है, बल्कि इससे केवल उसकी कमियां उजागर होती हैं।