Monday, December 23, 2024
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होलिका दहन के लिए इन पेड़ों की लकड़ियों का न करें उपयोग

हर साल लोगों को होली का बेसब्री से इंतजार रहता है. फाल्गुन माह की पूर्णिमा पर प्रदोष काल में होलिका दहन किया जाता है और फिर अगले दिन रंगोत्सव मनाते हैं. इस साल होलिका दहन 7 मार्च 2023 को है वहीं 8 मार्च 2023 को रंग वाली होली. कई जगह दिवाली की तरह ही होली का त्योहार होलिका दहन से शुरू होकर 5 दिन तक यानी रंग पंचमी तक मनाया जाता है.

होलिका दहन के लिए होलाष्टक से ही तैयारियां शुरू हो जाती है. होली से पहले लोग लकड़ी, उपले एक जगह इकट्ठा करके रखते हैं और फिर होलिका दहन पर उसमें अग्नि प्रज्वलित कर ये त्योहार मनाया जाता है. शास्त्रों के अनुसार कुछ ऐसे काम है जो होलिका दहन पर नहीं करना चाहिए. ये गलतियां आपको कंगाल बना सकती है.

होलिक दहन के लिए इन लकड़ियों का इस्तेमाल न करें

सनातन धर्म में कई पेड़ जैसे बरगद, पीपल, आंवला, अशोक, शमी, नीम, आम, केला और बेल को पूजनीय माना जाता है. इनकी लकड़ियों का प्रयोग यज्ञ, अनुष्ठान आदि शुभ कार्यों के लिए किया जाता है. ऐसे में होलिका दहन के लिए इन पेड़ों की लकड़ियों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. इससे पितृ और कालसर्प दोष लगता है. इन दोषों के कारण संतान संबंधी समस्याएं, वैवाहिक जीवन में अशांति आने लगती है. कहते हैं इन पेड़ों को नुकसान पहुंचाने से घर में दरिद्रता का वास होता है. धनवान भी कंगाली की कगार पर आ जाता है.

इन लकड़ियों से करें होलिका दहन

होलिका दहन के लिए गूलर और अरंडी के पेड़ टहनियों का इस्तेमाल करना चाहिए. वहीं जो किसी सूखे हुए पेड़ की लकड़ी का भी उपयोग कर सकते हैं. होलिका के ऊपर भाग में गाय के गोबर से बने कंडे का प्रयोग करें. ये पर्यावरण के लिए अच्छा माना जाता है.

होलिका दहन के नियम

  • धार्मिक मान्यता है कि जिन दंपत्ति का केवल एक ही संतान (पुत्र) हो उन्हें होलिका दहन की अग्नि प्रज्वलित नहीं करना चाहिए. इसे शुभ नहीं माना जाता.
  • होलिका दहन भद्रा रहित प्रदोष काल में ही किया जाता है. इस साल होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 7 मार्च शाम 6:23 से लेकर 8:51 तक रहेगा.
  • कहते हैं कि नवविवाहिता को होलिका दहन नहीं देखना चाहिए. साथ ही पहली होली अपने मायके में मनानी चाहिए.
  • होलिका दहन के दिन पैसों की उधारी करना आपको आर्थिक मोर्चे पर भारी पड़ सकता है. इससे धन हानि होती है और किसी को दिया हुआ पैसा वापस नहीं आता.
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