तरनतारन जिले के गोइंदवाल केंद्रीय कारागार में जिस तरह दो आपराधिक गिरोह आपस में भिड़े और दो लोगों की हत्या कर दी गई, उसे लेकर चिंता स्वाभाविक है। इस घटना से दो दिन पहले ही अमृतसर के अजनाला थाने को घेर कर खालिस्तान समर्थकों ने अपने एक आदमी को छुड़ाने का दबाव बनाया। यह पहला मौका था, जब किसी थाने को घेर कर इस तरह किसी आरोपी को आम लोगों ने छुड़वा लिया। अब केंद्रीय कारागार में दो ऐसे आरोपियों की हत्या कर दी गई, जिनका गायक मूसेवाला की हत्या में हाथ माना जाता है। बताया जा रहा है कि जेल में दो अपराधी गुटों की आपस में भिड़ंत हो गई और लोहे की सरिया और बर्तनों से नुकीले हथियार बना कर हमला किया गया। मारे गए दोनों लोगों के सिर पर गंभीर चोटें आई हैं। एक व्यक्ति गंभीर रूप से घायल है। यह समझना मुश्किल है कि जेल के भीतर सरिया आदि तक कैदियों की पहुंच कैसे संभव हो सकी। फिर सवाल यह भी है कि क्या जेल प्रशासन को यह जानकारी नहीं थी कि जिन दो गुटों के आरोपी जेल में बंद हैं, उनमें पुरानी रंजिश है और वे कभी भी आपस में भिड़ सकते हैं। पंजाब सीमावर्ती राज्य है, इसलिए वहां सुरक्षा को लेकर खासी सावधानी बरती जाती है। फिर केंद्रीय कारागार में, जहां खूंखार माने जाने वाले अपराधी कैद हों, वहां विशेष सतर्कता की अपेक्षा की जाती है। इसलिए गोइंदवाल जेल में हुई हिंसक झड़प से कई सवाल खड़े होते हैं। इस हत्या की जिम्मेदारी कनाडा में पनाह पाए गोल्डी बराड़ ने ली है। ऐसे में सवाल यह भी है कि क्या हत्या कराने वाले कनाडा में बैठ कर गोइंदवाल कारागार के भीतर साजिशों को अंजाम दे रहे थे। फिर, जेल प्रशासन इतना बेपरवाह कैसे था कि यह जानते-समझते हुए भी कि मूसेवाला हत्याकांड में गिरफ्तार आरोपियों में दो गिरोह के लोग हैं, जिनके बीच पुरानी रंजिश है, फिर भी उन्हें एक साथ बंद कर दिया गया। जेल प्रशासन का कहना है कि इन आरोपियों की सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम किया गया था। फिर भी दोनों गुटों में भिडंत हो गई और दो लोगों की हत्या कर दी गई, तो यह भी समझ से परे है कि आखिर उस घटना पर काबू कैसे नहीं पाया जा सका। क्या सुरक्षा में तैनात लोग हाथ पर हाथ धरे देखते रहे। पंजाब में जबसे आम आदमी पार्टी की सरकार बनी है, अचानक आपराधिक वृत्ति के गिरोह और अलगाववादी ताकतें सक्रिय हो उठी हैं। जो पार्टी अपराध और नशाखोरी मिटाने के दावे के साथ सत्ता में आई थी, अगर वही इन मोर्चों पर विफल नजर आ रही है, तो उस पर सवाल स्वाभाविक हैं। इस सच्चाई से इनकार नहीं किया जा सकता कि आम आदमी पार्टी की पंजाब सरकार वहां कानून-व्यवस्था के मामले में लचर साबित हो रही है। अब वह यह कह कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकती कि उसे कामकाज संभाले अधिक दिन नहीं हुए। किसी भी सरकार की पहली काबिलियत इस बात से तय हो जाती है कि उसने सत्ता की बागडोर संभालने के साथ ही कानून-व्यवस्था के मामले में क्या रणनीति अपनाई। इस मामले में पंजाब सरकार पूरी तरह विफल साबित हुई है। अगर यही सिलसिला बना रहा, तो बाहरी ताकतों को भी अपनी साजिशों को अंजाम देने का मौका मिलेगा।