राजनीति में पक्ष और विपक्ष के बीच आरोप-प्रत्यारोप कोई गलत बात नहीं, बशर्ते वह मर्यादा के भीतर हो। मगर हमारे राजनीतिक दल और राजनेता शायद इस तकाजे को भुलाते जा रहे हैं या फिर राजनीति का स्तर ही सिद्धांतों और मुद्दों से खिसक कर व्यक्तिगत छींटाकशी पर उतर आया है। इसके अनेक उदाहरण राजनीतिक दलों और सत्ता के शीर्ष तक मौजूद हैं। इसका ताजा उदाहरण कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा के बयान में दिखा, जब उन्होंने प्रधानमंत्री के निजी जीवन पर हमला बोला। स्वाभाविक ही उसे लेकर भारतीय जनता पार्टी में रोष पैदा हुआ। उनके खिलाफ कई जगह मुकदमे दर्ज कराए गए। उसी क्रम में असम की पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने दिल्ली पहुंच गई। मगर उसने गिरफ्तारी का जो तरीका अपनाया और जो समय चुना, वह किसी को भी उचित नहीं लगा। खेड़ा पार्टी के अधिवेशन में हिस्सा लेने रायपुर जा रहे थे। हवाई जहाज में बैठ चुके थे। तब उन्हें जहाज से उतार कर गिरफ्तार किया गया। इसे लेकर खासा हंगामा हुआ और आखिरकार उस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने दखल दिया, तब वह शांत हो सका। उचित ही इसे लेकर सरकार के रवैए पर भी सवाल उठे। इसलिए कि यह ऐसा मामला नहीं था, जिसमें गिरफ्तारी के लिए ऐसी हड़बड़ी दिखाई जाए। यह पहली बार नहीं है, जब किसी राजनेता के अभद्र, उत्तेजक और जानबूझ कर मानहानि करने वाले बयान पर अदालत ने फटकार लगाई या संयम बरतने की नसीहत दी। पवन खेड़ा की गिरफ्तारी पर रोक लगाते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि आप लोगों को संयम बरतना चाहिए। मगर यह बात कांग्रेस को कितनी समझ आई, कहना मुश्किल है। खेड़ा को रिहाई मिलते ही कांग्रेस के नेताओं ने अपनी सफाई में तमाम वे बयान साझा करने शुरू कर दिए, जो प्रधानमंत्री ने विभिन्न मौकों पर दिए थे। इस तरह गड़े मुर्दे उखाड़ कर एक तरह से अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों को उकसाया जाने लगा। इससे लगता नहीं कि दोनों पार्टियों के नेता आने वाले वक्त में भी ऐसी अशोभन टिप्पणियों से बाज आने वाले हैं। सार्वजनिक जीवन में राजनेताओं का आचरण नीचे के कार्यकर्ताओं के लिए अनुकरणीय बन जाता है, इसलिए अगर कोई दल या नेता किसी गलत परंपरा या आचरण को उचित ठहराने पर तुल जाता है, तो उसका असर पूरे समाज पर दिखाई देने लगता है। मगर शायद राजनीतिक दलों को इसकी परवाह नहीं, उन्होंने मान लिया है कि सड़कछाप भाषा से जनाधार मजबूत होता है। बड़प्पन इस बात में नहीं कि कोई छींटाकशी करे, तो आप भी उसका जवाब उसी लहजे में दें। असम पुलिस ने जिस तरह पवन खेड़ा को गिरफ्तार किया, उस पर भी सवाल उचित हैं। उसकी तत्परता से स्पष्ट हो गया कि उसकी कार्रवाई सत्ता प्रेरित है। अगर इस तरह उन्हें गिरफ्तार न किया जाता, तो शायद बहुत सारे लोगों का ध्यान उनके उस बयान की तरफ जाता भी नहीं। पर अब जो नहीं जानते थे, उन्हें भी पता लग गया। अगर किसी ने जुर्म किया है, तो उसके खिलाफ निस्संदेह कार्रवाई होनी चाहिए। मगर अपराध की गंभीरता को देखते हुए कार्रवाई की जाती है। ऐसा नहीं हो सकता कि पुलिस खुद नियम-कायदों को ताक पर रख कर कार्रवाई करे। अगर असम सरकार इस मामले में थोड़ा संयम बरतती, तो उससे उसका बड़प्पन ही जाहिर होता। इस तरह मर्यादाएं अब एक तरफ से नहीं, दोनों तरफ से टूटती नजर आती हैं। अफसोस कि जिन लोगों से आदर्श आचरण की अपेक्षा की जाती है, वही अमर्यादित आचरण करते देखे जाते हैं।