याचिकाकर्ता वकील का कहना था कि इस मामले में मीडिया सनसनी फैला रहा है। मगर अदालत ने कहा कि हम मीडिया पर रोक नहीं लगा सकते। समझना मुश्किल नहीं है कि इस याचिका के पीछे याचिकाकर्ता का क्या मकसद था। दरअसल, जबसे हिंडनबर्ग ने अडाणी समूह के गलत तरीके से बाजार में अपनी प्रतिभूतियों की कीमतें बढ़ाने को लेकर तथ्य प्रकाशित किए हैं, तबसे अडाणी समूह की मुश्किलें बढ़ गई हैं। शेयर बाजार में अडाणी समूह की कंपनियों के शेयरों की कीमतें लगातार गिर रही हैं। एक के बाद एक नए खुलासे हो रहे हैं। उसमें फर्जी कंपनियां खड़ी करके दूसरे देशों के जरिए धनशोधन के तथ्य भी उजागर हुए हैं। इस तरह इन कंपनियों में निवेश की गई भारतीय जीवन बीमा निगम और भारतीय स्टेट बैंक जैसी संस्थाओं की पूंजी को लेकर भी शंकाएं जताई जाने लगी हैं। एलआइसी और एसबीआइ में चूंकि देश के आम निवेशकों का पैसा जमा है और वही इन कंपनियों के शेयरों में लगाया गया है, इसलिए देश के करोड़ों निवेशकों की चिंता गहरी होती गई है। स्वाभाविक ही अडाणी समूह के शेयरों के गिरने और उनकी कंपनियों में हुए फर्जीवाड़े, अनियमितताओं आदि को लेकर विपक्ष हमलावर है और सरकार से सवाल कर रहा है। मीडिया उन तमाम पहलुओं की जानकारी परोस रहा है। याचिकाकर्ता की मंशा स्पष्ट है कि उसने मीडिया पर रोक लगाने की मांग ही इसलिए की थी ताकि अडाणी समूह से जुड़ी सूचनाएं आम निवेशकों तक न पहुंच पाएं और वह बदनामी से बच सके। मगर सर्वोच्च न्यायालय इन खबरों पर रोक लगा कर संवैधानिक तकाजे को मटियामेट नहीं कर सकता था। वह मांग ही बेतुकी थी। आखिर देश की अर्थव्यवस्था से जुड़ी किसी बड़ी घटना की सूचना नागरिकों तक पहुंचाने से किसी को क्यों रोका जाना चाहिए? मगर अडाणी समूह के पैरोकार शुरू से इस कोशिश में लगे रहे हैं कि किसी तरह कंपनी की साख को बचा लिया जाए, मगर वह संभव नहीं हो सका, तो खबरों पर रोक लगाने की याचिका ही दायर कर दी। सर्वोच्च न्यायालय इस मामले को लेकर काफी गंभीर है। इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि जब सरकार ने बंद लिफाफे में इस मामले की जांच के लिए प्रस्तावित समिति के सदस्यों के नाम दिए तो सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि वह इस मामले में पारदर्शिता चाहता है। वह बंद लिफाफे में दिए गए नामों के बजाय खुद समिति के सदस्यों का चुनाव करेगा। दरअसल, यह मामला गलत तरीके से धन जमा करने और आम निवेशकों के साथ धोखाधड़ी करके अपनी संपत्ति बढ़ाने से जुड़ा है। इसके कई गंभीर पक्ष हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उन पक्षों के बारे में जानने का हक हर नागरिक को है और यह जानकारी मीडिया ही पहुंचा सकता है। इसलिए सर्वोच्च न्यायालय ने सीधे ऐसी खबरों पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। इस निर्णय से एक नजीर भी बनी है कि जो लोग अनियमितता करके बदनामी से बचने या अपने विरुद्ध आ रही जानकारियों को दबाने का प्रयास करते हैं, उन्हें ऐसा करने से बाज आना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि जल्द ही वह इस मामले पर फैसला सुनाने वाला है। निस्संदेह सर्वोच्च न्यायालय के इस रुख से लोगों का भरोसा मजबूत हुआ है।